Choti Kahani In Hindi

बच्चों की कहानियां चुटकुले | चुटकुला कहानी कविता | Baccho Ki Kahaniya Chutkule


वैसे आज हम बच्चों की कहानियां चुटकुले  पढ़ने वाले है क्यूंकी चुटकुला कहानी कविता और बच्चों की कहानियां चुटकुले पढ्न बच्चो को बहुत अच्छा लगता है और साथ ही बच्चों की कहानियां चुटकुले पढ्न बच्चो के साथ बड़ो को भी पढ्न अच्छा लगता है तो चलिये शुरू करते है बिना किसी देरी के बच्चों की कहानियां चुटकुले
 बच्चों की कहानियां चुटकुले 

    दिमाग का उपयोग

    वैसे आज हम बच्चों की कहानियां चुटकुले  पढ़ने वाले है क्यूंकी चुटकुला कहानी कविता और बच्चों की कहानियां चुटकुले पढ्न बच्चो को बहुत अच्छा लगता है और साथ ही बच्चों की कहानियां चुटकुले पढ्न बच्चो के साथ बड़ो को भी पढ्न अच्छा लगता है तो चलिये शुरू करते है बिना किसी देरी के बच्चों की कहानियां चुटकुले


    किसी गांव में शम्भुदयाल नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहता था। वह बहुत विद्वान था और लोग आए दिन उस अपने घर में भोजन के लिए निमंत्रण देते रहते थे।

     एक दिन ब्राह्मण एक सेठ जी के यहां से भोजन करके आ रहा था। लौटते समय सेठ ने ब्राह्मण को एक बकरी उपहार में दी, जिससे ब्राह्मण रोजाना उसका दूध पी सकें।

    ब्राह्मण बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया और ब्राह्मण को लूटने का षड्यंत्र रचा। वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।

    जैसे ही ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। ब्राह्मण ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा, ‘महाराज मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक ब्राह्मण देवता अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं।’ ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ गया।थोड़ी ही दूरी पर ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। 

    ठग ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘हे ब्राह्मण महाराज, क्या इस गधे के पैर में चोट लगी है, जो आप इसे अपने कंधे पर रखकर ले जा रहे हैं।’ ब्राह्मण उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया और ठग से कहा, ‘तुम्हे दिखाई नहीं देता है कि यह बकरी है, गधा नहीं।

    ठग ने कहा, ‘महाराज शायद आपको किसी ने बेवकूफ बना दिया है, बकरी की जगह गधा देकर।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और सोचता हुआ आगे बढ़ गया।कुछ दूरी पर ही उसे तीसरा ठग दिखाई दिया। तीसरे ठग ने ब्राह्मण को देखते ही कहा, ‘महाराज आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं, आप कहें, तो मैं इसे आपके घर तक छोड़ कर आ जाता हूं, मुझे आपका आशीर्वाद और पुण्य दोनों मिल जाएंगे।’

     ठग की बात सुनकर ब्राह्मण खुश हो गया और बकरी को उसके कंधे पर रख दिया।थोड़ी दूर जाने पर तीसरे ठग ने पूछा, ‘महाराज आप इस गधे को कहां से लेकर आ रहें हैं।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और कहा, ‘भले मानस यह गधा नहीं बकरी है।’ ठग ने जोर देकर कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता, लगता है किसी ने आपके साथ छल किया है और यह गधा दे दिया।’ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है।

     तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह गधा मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया। फिर तीनों ठगों ने बाजार में उस बकरी को बेचकर अच्छी कमाई की और ब्राह्मण ने उनकी बात मानकर अपना नुकसान कर लिया।

    कहानी से सीख :किसी भी झूठ को अगर कई बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है, इसलिए हमेशा अपने दिमाग का उपयोग करें और सोच-विचार कर ही किसी पर विश्वास करें।


    अच्छे और बुरे दोनों परिणाम 

    बहुत समय पहले की बात है द्रोण नगरी में चार दोस्त रहा करते थे। उन चारों में से तीन ब्राह्मण कई तरह की विद्याओं में निपुण थे, जबकि चौथे के पास किसी तरह की विद्या नहीं, लेकिन वह बहुत बुद्धिमान था।

     चौथा दोस्त हमेशा अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके हर समस्या से बचने का रास्ता निकाल लेता था, जबकि अन्य दोस्त विद्यावान होते हुए भी समझदारी से काम नहीं लेते थे।एक दिन उन चारों दोस्तों ने मिलकर सोचा कि पैसा कमाने के लिए विदेश जाना चाहिए।

     वहां जाकर ही विद्या का लाभ मिलेगा और पैसे कमाने का रास्ता भी। इसी सोच के चलते चारों विदेश यात्रा पर चल दिए। यात्रा करने के दौरान एक ब्राह्मण दोस्त ने कहा कि हम में से सिर्फ एक दोस्त के पास विद्या नहीं है। ऐसे दोस्त को हमारी विद्या के कारण मिलने वाला धन नहीं मिलना चाहिए।

     वो घर वापस जा सकता है।इस पर काफी देर चर्चा करने के बाद दूसरा दोस्त इस बात से सहमत हो गया, लेकिन तीसरे दोस्त ने कहा कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा। हम सभी बचपन से दोस्त हैं और अब यह फैसला लेना गलत होगा। हम जो कुछ भी कमाएंगे, उसे चार हिस्सों में बांट देंगे। इस बात पर सबने हामी भरी और सभी विद्या का चमत्कार लोगों को दिखाने के लिए आगे की ओर बढ़ने लगे।

    यात्रा के दौरान जंगल से गुजरते हुए उन्हें एक मरा हुआ शेर दिखा। सभी ब्राह्मणों ने कहा कि हम अपनी विद्या के चमत्कार से इस शेर को जिंदा कर देंगे। इससे हमें बहुत यश और कीर्ति मिलेगी। तीनों ब्राह्मण दोस्त उसे जिंदा करने में लग गए, लेकिन चौथे बुद्धिमान दोस्त ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। 

    उसने कहा कि अगर तुम लोग इसे जिंदा कर दोगे, तो वह जिंदा होते ही हम सबको खा जाएगा।चौथे दोस्त के बहुत कहने के बावजूद तीनों दोस्त नहीं माने। उनमें से एक ब्राह्मण शेर की अस्थियों को समेटने लगा, तो दूसरा उसके अंक को और चौथा उसके शरीर में प्राण डालने की कोशिश करता रहा। तीनों को अपनी-अपनी विद्या का इस्तेमाल करते देख चौथा दोस्त डर गया। 

    उसने अपने सभी मित्रों से कहा, “ठीक है, तुम लोग अपने मन की करो, लेकिन मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो।”इतना कहकर चौथा दोस्त झट से पेड़ पर चढ़ गया। वहीं, अन्य दोस्त मिलकर अपनी सिद्धियों और विद्याओं के बल से उस शेर को जीवित करने की कोशिश में लग गए।

     देखते ही देखते शेर जिंदा हो जाता है। शेर जैसे ही जिंदा हुआ वह अपने आसपास तीन ब्राह्मणों को देखते ही उन्हें मार डालता है, जबकि पेड़ पर चढ़ा चौथा दोस्त अपनी समझदारी से बच जाता है।

    कहानी से सीख:शेर जी उठा कहानी” यही सीख देती है कि विद्या के नशे में चूर होकर किसी काम को नहीं करना चाहिए। हर काम को करते हुए उसके अच्छे और बुरे दोनों परिणाम के बारे में सोचना जरूरी है। सिर्फ विद्या में निपुणता ही नहीं, बल्कि बुद्धि का होना भी जरूरी होता है।


    अपनी आत्मरक्षा

    एक गांव में द्रोण नाम का ब्राह्मण रहता था। वह बहुत गरीब था। न उसके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े थे और न ही कुछ खाने को था। ब्राह्मण जैसे-तैसे भिक्षा मांगकर अपना गुजारा कर रहा था। उसकी गरीबी को देखकर एक यजमान को उस पर दया आ गई।

     उसने द्रोण को बैलों का एक जोड़ा दान में दे दिया।बैलों को गौधन मानकर ब्राह्मण द्रोण उनकी सेवा पूरी लगन के साथ करने लगा। उसे बैलों से इतना प्रेम था कि वो खुद कम खाता था, लेकिन बैलों को भरपेट खिलाता था। ब्राह्मण की सेवा पाने के बाद दोनों बैल तंदुरुस्त हो गए।

     एक दिन हटेकट्टे बैलों पर चोर की नजर पड़ गई। बैलों को देखते ही चोर ने मन-ही-मन बैलों को चुराने की योजना बना ली।योजना बनाने के बाद रात होते ही चोर ब्राह्मण के घर बैल चुराने के इरादे निकल गया। कुछ दूर चलते ही चोर का सामना एक भयानक राक्षस से हुआ। 

    राक्षस ने चोर से पूछा, “तुम इतनी रात को कहां जा रहे हो?” चोर ने कहा, “मैं ब्राहमण के बैल चोरी करने जा रहा हूं।”  चोर की बात सुनकर राक्षस बोला, “चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं। मैं कई दिनों से भूखा हूं। 

    मैं उस ब्राह्मण को खाकर अपनी भूख शांत करूंगा और तुम उसके बैल ले जाना।”चोर के मन में हुआ कि रास्ते के लिए एक साथी भी हो जाएगा, तो इसे साथ ले जाने में कोई बुराई नहीं है। यह सोचकर चोर अपने साथ राक्षस को साथ लेकर ब्राह्मण के घर पहुंचा।ब्राह्मण के घर पहुंचकर राक्षस बोला, “पहले मैं ब्राह्मण को खा लेता हूं, उसके बाद तुम बैल चुरा लेना।” चोर ने कहा, “नहीं, पहले मैं बैल चुराउंगा उसके बाद तुम ब्राह्मण को खाना। अगर तुम्हारे आक्रमण से ब्राह्मण जाग गया, तो मैं बैल चुरा नहीं पाऊंगा।”

     फिर राक्षस बोला, “जब तुम बैल खोलोगे, तो उसकी आवाज से भी ब्राह्मण जागकर अपनी रक्षा कर सकता है। मैं इस चक्कर में भूखा रह जाऊंगा।”राक्षस और चोर दोनों इसी तरह बहस करते रहे। एक दूसरे कि बात मानने को उनमें से कोई तैयार नहीं था। उसी बीच राक्षस और चोर की आवाज सुनकर ब्राह्मण जाग गया। ब्राह्मण को जागा देखकर जल्दी से चोर बोला, “हे! ब्राह्मण देखो यह राक्षस आपको खाने आया है, लेकिन मैंने इससे आपको बचा लिया।

     इसने कई बार आपको खाने की कोशिश भी की पर मैंने ऐसा होने नहीं दिया।”चोर की बात सुनकर राक्षस ने भी तुरंत कहा, “नहीं ब्राह्मण, मैं आपको खाने नहीं, बल्कि आपके बैलों की रक्षा करने के लिए यहां आया हूं।

     यह चोर आपके बैल चुराने आया था।” दोनों की बात सुनकर ब्राह्मण को शक हुआ। खतरे को भांपते हुए ब्राह्मण ने फटाफट डंडा उठाया और दोनों को भगा दिया।

    कहानी से सीख: हमें हमेशा परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए, जैसे इस कहानी में ब्राह्मण ने किया। उसे चोर व राक्षस की बात सुनने के बाद अपनी आत्मरक्षा के लिए डंडा उठा लिया, जो उस परिस्थिति के लिए बिल्कुल सही था।


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