Choti Kahani In Hindi

हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी | अच्छी अच्छी प्यारी प्यारी कहानी | Hindi Kahaniyan Acchi Acchi

तो दोस्तो ! आज आप सभी की कहेने पर मई लाया हु आप सभी के लिए  हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी क्यूंकी अच्छी अच्छी प्यारी प्यारी कहानी पढ़ना सभी को अच्छा लगता है खास करके  हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी पढ्न बच्चो को बहुत अच्छा लगता है तो चलिये पढ़ते है  हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी


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    नूडल्स वाले की सफलता

    एक बार की बात है, आनंद नाम का एक युवक चमन नगर नाम के एक छोटे से गांव में अपने माता-पिता के साथ रहता था। चमन नगर एक सुंदर और शांतिपूर्ण गांव था, जहां अधिकतर लोग खेती और छोटे-मोटे व्यवसाय करते थे।

    आनंद के पिता, श्रीकांत, भी एक किसान थे और मां, सविता, घर का कामकाज संभालती थीं। आनंद पढ़ाई में बहुत होशियार था और उसका सपना था कि वह एक दिन बड़ा आदमी बने और अपने माता-पिता का नाम रोशन करे।


    आनंद की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी और उसके पिता ने उसे पूछा, "बेटा, अब तुम्हारी पढ़ाई खत्म हो चुकी है। क्या अब तुम्हें नौकरी मिलेगी?"


    आनंद ने आत्मविश्वास से कहा, "हाँ पापा, मुझे अब नौकरी लगने वाली है। मैं कल ही शहर जाकर नौकरी के लिए अप्लाई करूंगा।"

    दूसरे दिन सुबह-सवेरे आनंद उठता है और शहर के लिए निकलता है। शहर में पहुँचकर वह अपने दोस्त राकेश से मिलता है, जो पहले से ही शहर में रहकर नौकरी कर रहा था। 


    राकेश ने आनंद की हर तरह से मदद की और उसे एक अच्छे ऑफिस में नौकरी के लिए अप्लाई करने में सहायता की। आनंद ने ऑफिस में अपना बायोडाटा दिया और नौकरी के लिए अप्लाई किया।

    लेकिन आनंद के साथ कई सारे विद्यार्थियों ने भी नौकरी के लिए अप्लाई किया था। आनंद को लग रहा था कि शायद उसका नंबर नहीं आएगा क्योंकि बहुत सारे विद्यार्थियों ने अप्लाई किया था।

    एक महीने बाद आनंद को पता चलता है कि उसे नौकरी नहीं मिली है क्योंकि नौकरी के सिर्फ 10 जगह खाली थी और 1000 लोगों ने अप्लाई किया था। 


    यह देखकर आनंद बहुत दुखी हो जाता है क्योंकि उसके पिता ने उसे बहुत ही मेहनत और मशक्कत से बड़ा किया था और उसे पढ़ाई के लिए पैसे दिए थे। पर आज वह इतना भी काबिल नहीं था कि अपने पिता की मदद कर सके।

    तभी उसका दोस्त राकेश उसके पास आता है और कहता है, "चलो शहर में मुझे कुछ काम है, जाकर रखते हैं।"

    आनंद कहता है, "ठीक है, चलो। वैसे भी मुझे कोई काम नहीं है।"

    आनंद और राकेश शहर जाते हैं और उन्हें वहां शाम हो जाती है। तभी राकेश आनंद को नूडल्स खिलाता है। वह नूडल्स बहुत ही स्वादिष्ट थे, इसलिए आनंद को बहुत पसंद आई। आनंद ने पूरी नूडल्स जल्दी ही साफ कर दी। 

    लेकिन वह देखकर हैरान रह गया कि जब बिल आया तो उसमें एक नूडल्स की कीमत ₹100 थी। मतलब राकेश ने ₹200 दिए सिर्फ दोनों नूडल्स के।

    आनंद ने कहा, "इतनी महंगी नूडल्स?"

    राकेश ने कहा, "हाँ, यह बहुत महंगी नूडल्स हैं। ₹200 की भी मिलती हैं और ₹500 की भी। हमारे गांव के बहुत से लड़के यहां नूडल्स खाने के लिए आते हैं।"

    आनंद के दिमाग में एक आईडिया आता है। वह घर जाकर अपने पिता से कहता है, "मुझे ₹10000 की जरूरत है। मैं कोई बिजनेस शुरू करना चाहता हूँ।"

    श्रीकांत अपने बेटे की उत्सुकता देखकर खुश होते हैं, लेकिन वे जानते थे कि उनके पास इतनी बड़ी रकम नहीं है। फिर भी, उन्होंने गांव के जमींदार से ₹10000 कर्ज लिया और आनंद को दे दिए। आनंद उन ₹10000 से एक नूडल्स का ठेला लगाता है गांव के चौराहे पर।

    क्योंकि आनंद ने पहले ही यूट्यूब पर देखकर सीख लिया था कि नूडल्स कैसे बनाए जाते हैं, वह उसी तरीके से नूडल्स बनाने लगा और स्वादिष्ट नूडल्स खिलाने लगा। उसने अपने नूडल्स की कीमत केवल ₹70 रखी थी। गांव वाले बहुत खुश थे यह देखकर।

    "शहर जाकर तो यह नूडल्स ₹100 के मिलते हैं और गांव में तो ₹70 के ही मिल रहे हैं, मतलब ₹30 का फायदा और उनका शहर आने-जाने का खर्चा भी नहीं," गांव वाले कहते।

    इसलिए आज पड़ोस के गांव के लोग भी आनंद के यहां नूडल्स खाने आते थे। कुछ ही दिनों में आनंद ने ₹10000 जमा कर लिए और उसके पिता ने जमींदार का कर्ज चुका दिया। इसी तरह आनंद ने अपना बिजनेस बड़ा कर दिया और हर गांव में एक नूडल्स का ठेला लगाने लगा।

    आनंद का व्यवसाय तेजी से बढ़ने लगा। उसने गांव के कुछ और युवाओं को अपने व्यवसाय में शामिल किया, जिनमें से एक था विजय, जो आनंद का बचपन का दोस्त था। विजय ने आनंद के व्यवसाय को और भी अधिक बढ़ाने के लिए नए-नए आइडियाज दिए।

     विजय ने सुझाव दिया कि वे नूडल्स के साथ-साथ अन्य चाइनीज़ डिशेज़ भी बेच सकते हैं, जिससे उनका व्यवसाय और भी बढ़ेगा।

    आनंद ने विजय की सलाह मानी और वे दोनों मिलकर नूडल्स के ठेलों पर चाउमीन, मोमोज़, और फ्राइड राइस जैसी चीजें भी बेचने लगे। धीरे-धीरे आनंद ने अपने ठेलों की संख्या बढ़ा दी और हर गांव में एक-एक ठेला लगाने लगा। 

    उनके व्यवसाय की चर्चा पूरे जिले में फैल गई और लोग दूर-दूर से उनके स्वादिष्ट नूडल्स और अन्य डिशेज़ खाने आने लगे।

    एक दिन, आनंद के ठेले पर एक बड़ी कंपनी के प्रतिनिधि आए। उन्होंने आनंद के बिजनेस मॉडल और उसकी सफलता की कहानी सुनी और उसे अपने रेस्तरां चेन के लिए साझेदारी का प्रस्ताव दिया। आनंद ने इस अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया और कंपनी के साथ एक बड़ा अनुबंध कर लिया।

    आनंद अब केवल गांव में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी अपने रेस्तरां खोलने लगा। उसके व्यवसाय ने उसे इतना सफल बना दिया कि वह अब हजारों लोगों को रोजगार दे रहा था। 

    आनंद ने अपने गांव में एक स्कूल और अस्पताल भी बनवाया, ताकि उसके गांव के लोग अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त कर सकें।

    आनंद के माता-पिता, श्रीकांत और सविता, अपने बेटे की इस सफलता से बहुत गर्व महसूस करते थे। उन्होंने अपने बेटे को एक साधारण किसान से एक सफल व्यवसायी बनते देखा था। आनंद ने भी अपने माता-पिता का आभार व्यक्त किया और कहा, "आपकी मेहनत और प्रोत्साहन के बिना मैं यह सब नहीं कर पाता।"

    आनंद की कहानी पूरे जिले में एक प्रेरणा बन गई। उसने यह साबित कर दिया कि मेहनत, लगन और सही सोच के साथ कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। आनंद की सफलता की कहानी ने कई युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने का हौसला दिया।


     सुनहरा बादाम

    लहुली गांव, एक छोटा-सा गांव, हरे-भरे पहाड़ों और चमकते तालाबों के बीच बसा था। गांव के लोग छोटे-मोटे व्यवसाय करते थे, जिससे उनकी जरूरतें पूरी हो जाती थीं। वे अपनी जिंदगी से खुश थे, क्योंकि उनके तालाबों में पानी हमेशा लबालब भरा रहता था।


     इस वजह से गांव में कभी पानी की कमी नहीं होती थी और लोग बिना किसी चिंता के अपने खेतों की सिंचाई कर पाते थे।

    गांव का वातावरण बहुत ही शांत और खुशहाल था। लहुली के पास एक और गांव था जहां पानी की बहुत कमी थी। वहां के लोग पानी के लिए बहुत परेशान रहते थे और उन्हें दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था। वे लहुली गांव के तालाब की कहानियां सुनते थे और सोचते थे कि काश उनके गांव में भी ऐसा कोई तालाब होता।


    लहुली गांव के सरपंच का बेटा मगन, गांव का सबसे चतुर लड़का माना जाता था। मगन की उम्र करीब बीस साल की थी, लेकिन वह अपने चतुराई और बुद्धिमानी के कारण गांव के बड़े-बूढ़ों के बीच भी बहुत प्रसिद्ध था। वह अक्सर नई-नई योजनाएं बनाता और अपने पिता को सुझाता रहता था।


    एक दिन मगन अपने पिता के पास गया और बोला, "पिताजी, मैंने एक नई योजना बनाई है। हमें गांव के तालाब के पानी पर टैक्स लगा देना चाहिए। इससे लोग हमें टैक्स देंगे और हमारी अच्छी-खासी आय हो जाएगी। हम इस पैसे से गांव के विकास के लिए बहुत सारे काम कर सकते हैं।"

    सरपंच, जो बहुत ही समझदार और अनुभवशील व्यक्ति थे, ने मगन की बात ध्यान से सुनी और फिर बोले, "मगन, यह योजना सुनने में तो अच्छी लगती है, लेकिन लालच बहुत बुरी बला होती है। 


    अगर हमने पानी पर टैक्स लगा दिया तो गांव के लोग हमसे नाराज हो जाएंगे और अगली बार किसी और को सरपंच बना देंगे। हमें अपने गांव के लोगों की भलाई के लिए काम करना चाहिए, न कि उनसे पैसे वसूलने के लिए।"

    मगन अपने पिता की बात सुनकर निराश हो गया। उसे लगा कि उसके पिता उसकी बुद्धिमानी को समझ नहीं पा रहे हैं। वह उदास होकर गांव के बाहर एक नहर के पास जाकर बैठ गया। नहर के किनारे बैठकर वह अपने विचारों में डूब गया। तभी उसकी नजर नहर में तैरते हुए एक बादाम पर पड़ी। वह बादाम सुनहरी रंग का था और चमक रहा था।

    मगन ने उस बादाम को उठाया और उसे ध्यान से देखा। बादाम बहुत ही आकर्षक लग रहा था। मगन सोचने लगा कि यह बादाम इतना चमकदार और सुन्दर क्यों है। वह इसे लेकर गांव के एक संत बाबा के पास गया। संत बाबा गांव में बहुत प्रसिद्ध थे, लेकिन असल में वे एक ढोंगी बाबा थे। 


    बाबा ने मगन को देखा और मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या बात है मगन, तुम इतने उदास क्यों हो?"

    मगन ने बाबा को पूरा किस्सा सुनाया और फिर वह सुनहरी बादाम दिखाते हुए बोला, "मुझे यह बादाम नहर में तैरता हुआ मिला है। मैं इसका क्या करूं?"

    बाबा ने बादाम को देखा और अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर लीं। उन्होंने मगन से कहा, "यह कोई साधारण बादाम नहीं है। यह एक जादुई बादाम है। जो भी इसे खाएगा, वह बहुत बुद्धिमान और शक्तिशाली बन जाएगा।"

    मगन ने बाबा की बात सुनी और तुरंत ही वह बादाम खा लिया। बादाम खाने के बाद उसे लगा कि वह अब बहुत ही बुद्धिमान और शक्तिशाली हो गया है। उसने सोचा कि अब वह गांव के लोगों को अपनी बुद्धिमानी का परिचय देगा।

    गांव में एक बूढ़ा आदमी अपने पैसों का हिसाब कर रहा था। मगन ने उसे देखा और पास जाकर कहा, "बाबा, मुझे यह हिसाब करने दीजिए। मैं बहुत बुद्धिमान हूं और जल्दी ही यह हिसाब कर दूंगा।" बूढ़ा आदमी, जो मगन की चतुराई के किस्से सुन चुका था, ने उसे हिसाब करने दिया। 

    हिसाब बहुत ही सरल था और मगन ने जल्दी ही कर दिया। उसे लगा कि यह सब सुनहरी बादाम का कमाल है।

    दिन बीतते गए और मगन को पूरा विश्वास हो गया कि सुनहरी बादाम खाकर वह वाकई में बहुत बुद्धिमान और शक्तिशाली हो गया है। उसने गांव के लोगों को यह कहानी सुनानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गांव के लोग भी उसकी बातों पर विश्वास करने लगे।

    मगन के पिता को यह बात पता चली और उन्होंने सोचा कि अब समय आ गया है कि मगन को सही रास्ते पर लाया जाए। उन्होंने अपने बेटे को सबक सिखाने का निर्णय लिया। एक दिन उन्होंने गांव का सबसे गुस्सैल बैल मंगवाया और मगन से कहा, "देखो मगन, यह बैल रस्सी से छूट गया है। इसे पकड़कर वापस कोठी में डाल दो।"


    मगन, जो खुद को बहुत शक्तिशाली मानता था, ने तुरंत ही इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। वह बैल को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन जैसे ही उसने बैल को पकड़ने की कोशिश की, बैल ने उसे बहुत ही बुरी तरह से जख्मी कर दिया।

    मगन के पिता, जो पास ही खड़े थे, तुरंत उसे अस्पताल ले गए। अस्पताल में मगन को होश आया और उसने देखा कि उसके पिता उसके पास खड़े हैं। उसके पिता ने उसे सारी सच्चाई बताई और कहा, "मगन, यह सब कुछ एक ढोंगी बाबा की चाल थी। उसने तुम्हें मूर्ख बनाया और तुम उसकी बातों में आ गए। असली बुद्धिमानी और शक्ति हमारे कर्मों में होती है, न कि किसी जादुई बादाम में।"

    मगन को बहुत अफसोस हुआ और उसने पछतावा किया कि वह एक ढोंगी बाबा के बातों में आकर मूर्ख बन गया। उसने अपने पिता से माफी मांगी और वादा किया कि अब वह किसी भी बात पर बिना सोचे-समझे भरोसा नहीं करेगा और किसी के हाथों मूर्ख नहीं बनेगा।

    इसके बाद, मगन ने अपनी गलती से सीखा और गांव के विकास के लिए अपने पिता के साथ मिलकर काम करने लगा। उसने यह समझ लिया था कि असली बुद्धिमानी और शक्ति मेहनत और सच्चाई में होती है। उसने ढोंगी बाबा के खिलाफ भी आवाज उठाई और गांव के लोगों को उसकी चाल से बचाया।

    मगन की इस घटना से गांव के लोग भी सीख गए कि किसी भी बात पर बिना सोचे-समझे भरोसा नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपने बच्चों को भी यह सिखाया कि मेहनत और सच्चाई से ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

    मगन ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सीखा और एक सच्चा और मेहनती इंसान बन गया। उसने गांव के विकास के लिए कई नई योजनाएं बनाई और अपने पिता के साथ मिलकर उन्हें पूरा किया। गांव के लोग मगन की तारीफ करने लगे और उसे एक सच्चा नेता मानने लगे।

    मगन की कहानी से यह सीख मिलती है कि जीवन में किसी भी तरह की शॉर्टकट सफलता नहीं दिला सकती। मेहनत, सच्चाई, और सही दिशा में किए गए प्रयास ही हमें जीवन में सफल बनाते हैं। मगन ने अपनी गलती से सीखा और एक बेहतर इंसान बनकर दिखाया कि असली शक्ति हमारे अंदर ही होती है।

    मगन के पिता ने भी अपने बेटे की प्रगति देखकर गर्व महसूस किया और सोचा कि उन्होंने अपने बेटे को सही रास्ते पर लाने में सफलता प्राप्त की है। गांव के लोग भी मगन और उसके पिता की तारीफ करने लगे और उनके आदर्शों को अपनाने लगे।

    इस तरह, लहुली गांव में एक नई जागरूकता आई और लोग मेहनत और सच्चाई के साथ अपनी जिंदगी बिताने लगे। मगन की कहानी हमेशा के लिए गांव के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गई और आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाने के लिए प्रेरित करती रही कि जीवन में किसी भी शॉर्टकट का सहारा नहीं लेना चाहिए।

    मगन ने अपनी मेहनत और सच्चाई से गांव के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और गांव के लोग उसकी तारीफ करने लगे। उसकी यह कहानी हमेशा के लिए गांव के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गई।

    इस तरह, मगन ने अपने जीवन में एक नई दिशा प्राप्त की और अपने गांव के लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया। उसने यह साबित कर दिया कि असली बुद्धिमानी और शक्ति मेहनत और सच्चाई में ही होती है। उसकी कहानी ने गांव के लोगों को यह सिखाया कि जीवन में किसी भी शॉर्टकट का सहारा नहीं लेना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर चलना ही सही रास्ता है।

    मगन की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सही दिशा में मेहनत और सच्चाई के साथ किए गए प्रयास ही हमें सफलता दिलाते हैं। उसने अपने पिता के मार्गदर्शन में एक नया जीवन शुरू किया और गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसकी इस यात्रा ने हमें यह सिखाया कि जीवन में किसी भी तरह की शॉर्टकट सफलता नहीं दिला सकती और हमें हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।


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