बुद्धि का उपयोग
बहुत पुरानी बात है, एक घने जंगल में बड़ा-सा शेर रहता था। उससे जंगल के सभी जानवर थर-थर कांपते थे। वह हर रोज जंगल के जानवरों का शिकार करता और अपना पेट भरता था।एक दिन वह पूरा दिन जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे एक भी शिकार नहीं मिला।
भटकते-भटकते शाम हो गई और भूख से उसकी हालत खराब हो चुकी थी। तभी उस शेर को एक गुफा दिखी। शेर ने सोचा कि क्यों न इस गुफा में बैठकर इसके मालिक का इंतजार किया जाए और जैसे ही वो आएगा, तो उसे मारकर वही अपनी भूख मिटा लेगा।
यह सोचते ही शेर दौड़कर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया।वह गुफा एक सियार की थी, जो दोपहर में बाहर गया था। जब वह रात को अपनी गुफा में लौट रहा था, तो उसने गुफा के बाहर शेर के पंजों के निशान देखे। यह देखकर वह सतर्क हो गया। उसने जब ध्यान से निशानों को देखा, तो उसे समझ आया कि पंजे के निशान गुफा के अंदर जाने के हैं, लेकिन बाहर आने के नहीं हैं।
अब उसे इस बात का विश्वास हो गया कि शेर गुफा के अंदर ही बैठा हुआ है।फिर भी इस बात की पुष्टि करने के लिए सियार ने एक तरकीब निकाली। उसने गुफा के बाहर से ही आवाज लगाई, “अरी ओ गुफा! क्या बात है, आज तुमने मुझे आवाज नहीं लगाई। रोज तुम पुकारकर बुलाती हो, लेकिन आज बड़ी चुप हो। ऐसा क्या हुआ है?”अंदर बैठे शेर ने सोचा, “हो सकता है यह गुफा रोज आवाज लगाकर इस सियार को बुलाती हो, लेकिन आज मेरे वजह से बोल नहीं रही है।
कोई बात नहीं, आज मैं ही इसे पुकारता हूं।” यह सोचकर शेर ने जोर से आवाज लगाई, “आ जाओ मेरे प्रिय मित्र सियार। अंदर आ जाओ।”इस आवाज को सुनते ही सियार को पता चल गया कि शेर अंदर ही बैठा है। वो तेजी से अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया।
कहानी से सीख :मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी बुद्धि से काम लिया जाए, तो उसका हल निकल सकता है।
महेनत , लगन और सफलता
एक वक्त की बात है, किसी शहर में एक कंजूस ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसे भिक्षा में जो सत्तू मिला, उसमें से थोड़ा खाकर बाकी का उसने एक मटके में भरकर रख दिया। फिर उसने उस मटके को खूंटी से टांग दिया और पास में ही खाट डालकर सो गया। सोते-सोते वो सपनों की अनोखी दुनिया में खो गया और विचित्र कल्पनाएं करने लगा।
वो सोचने लगा कि जब शहर में अकाल पड़ेगा, तो सत्तू का दाम 100 रुपये हो जाएगा। मैं सत्तू बेचकर बकरियां खरीद लूंगा। बाद में इन बकरियों को बेचकर गाय खरीदूंगा। इसके बाद भैंस और घोड़े भी खरीद लूंगा।कंजूस ब्राह्मण कल्पनाओं की विचित्र दुनिया में पूरी तरह खो चुका था।
उसने सोचा कि घोड़ों को अच्छी कीमत पर बेचकर खूब सारा सोना खरीद लूंगा। फिर सोने को अच्छे दाम पर बेचकर बड़ा-सा घर बनाऊंगा। मेरी संपत्ति को देखकर कोई भी अपनी बेटी की शादी मुझसे करा देगा। शादी के बाद मेरा जो बच्चा होगा, मैं उसका नाम मंगल रखूंगा।
फिर जब मेरा बच्चा अपने पैरों पर चलने लगेगा, तो मैं दूर से ही उसे खेलते हुए देखकर आनंद लूंगा। जब बच्चा मुझे परेशान करने लगेगा, तो मैं गुस्से में पत्नी को बोलूंगा और कहूंगा कि तुम बच्चे को ठीक से संभाल भी नहीं सकती हो।
अगर वह घर के काम में व्यस्त होगी और मेरी बात का पालन नहीं करेगी, तब मैं गुस्से में उठकर उसके पास जाऊंगा और उसे पैर से ठोकर मारूंगा। ये सारी बातें सोचते-सोचते ब्राह्मण का पैर ऊपर उठता है और सत्तू से भरे मटके में ठोकर मार देता है, जिससे उसका मटका टूट जाता है।इस तरह सत्तू से भरे मटके के साथ ही कंजूस ब्राह्मण का सपना भी चकनाचूर हो जाता है।
कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी काम को करते वक्त मन में लोभ नहीं आना चाहिए। लोभ का फल कभी भी मीठा नहीं होता है। साथ ही सिर्फ सपने देखने से सफलता नहीं मिलती, इसके लिए मेहनत करना भी जरूरी है।
शांत दिमाग की कला
बहुत पुरानी बात है एक जंगल में खूंखार शेर राज किया करता है। राजा होने के कारण वह शेर जंगल के बाकी सारे जानवरों पर धौंस जमाता था और उनका शिकार करके उन्हें खा जाया करता था। कई बार वह एक या दो नहीं, बल्कि कई जानवरों को मार दिया करता था। इस बात से जंगल के सभी जानवर बहुत परेशान थे।
उन्हें डर लगता था कि इस तरह एक दिन शेर जंगल के सारे जानवरों को खा जाएगा। इस बात का हल निकालने के लिए सभी जानवरों ने फैसला किया कि वो जाकर शेर से बात करेंगे और उसे समझाने की कोशिश करेंगे।इस फैसले के बाद हिम्मत करके दूसरे दिन सभी जानवर शेर के पास गए। शेर अपनी गुफा में आराम कर रहा था।
उन सभी के आने के कारण उसकी नींद खुल गई। उन सभी को एक साथ देखकर शेर गुस्से से बोला, “तुम सभी एक साथ यहां क्या कर रहे हो? मैंने कोई दावत रखी है क्या?”इस बात पर जानवर दल का सरदार बोला, “महाराज, हम सभी यहां आपसे एक विनती करने आए हैं। दरअसल, आप जब भी शिकार पर निकलते हैं,
तो एक साथ कई जानवर मार देते हैं, जिनमें से कई को आप खा भी नहीं पाते। आपके ऐसा करने से हमारी संख्या कम होती जा रही है और आपकी प्रजा छोटी होती जा रही है। अगर यूं ही चलता रहा, तो एक दिन आपके राज्य में एक भी जानवर नहीं बचेगा और जब प्रजा ही नहीं होगी, तो राजा भला किस पर राज करेगा? इसलिए, आपको सदैव अपना राजा बनाए रखने के लिए, हमने आपके भोजन का इंतजाम करने के लिए योजना बनाई है।
हमारा सुझाव यह है कि आप शिकार पर न निकला करें, बल्कि हम खुद रोज एक जानवर आपकी गुफा में भेज दिया करेंगे। इस तरह रोज आपका भोजन भी हो जाएगा, आपको मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और आपकी प्रजा को भी राहत रहेगी।”शेर को जानवरों की योजना सही लगी और उसने कहा, “ठीक है। मुझे तुम्हारा सुझाव मंजूर है, लेकिन एक बात का ध्यान रखना।
अगर किसी दिन मेरा भोजन आने में देर हुई या भोजन कम आया, तो मैं जितने चाहूं, उतने जानवरों को मार डालुंगा।” जानवरों ने उसकी बात पर सहमति जताई और वापस अपने घर को लौट आए।उस दिन के बाद से हर रोज एक जानवर शेर की गुफा में पहुंच जाता और शेर उसे मारकर अपना भोजन बना लेता। यूं ही चलते-चलते एक दिन खरगोश की बारी आई।
वह बहुत छोटा था, लेकिन चतुर भी था। उसने सोचा कि रोज शेर के हाथों एक जानवर मारा जाता है। यह तो गलत है। इस परेशानी का समाधान करने के लिए कोई चाल चलनी पड़ेगी, तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया।वह धीरे-धीरे, घूमता-फिरता शेर की गुफा तक पहुंचा। वहां पहुंच कर उसने देखा कि शेर गुस्से से आग बबूला हो रखा है।
शेर ने जैसे ही खरगोश को देखा, उसका गुस्सा बढ़ गया और वह दहाड़ कर बोला, “तुम जरा से खरगोश मेरा पेट भरने आए हो और ऊपर से इतनी देरी से आए हो? पता है मुझे कितनी जोर से भूख लगी है। कहां मर गए थे और तुमसे मेरा पेट कैसे भरेगा?”शेर को तिमिलाया हुआ देख खरगोश बोला, “महाराज, मैं आपकी सेवा में अकेला नहीं आ रहा था, बल्कि मेरे साथ, मेरे पांच साथी और भी थे,
लेकिन मगर महाराज, रास्ते में हमे एक और शेर मिल गया, जो हमे खाने की जिद करने लगा। वह मेरे साथियों को मारकर खा गया। मैं किसी तरह अपनी जान बचा कर यहां आया हूं।”यह सुन कर शेर और ज्यादा गुस्सा हो गया।
वह बोला, “एक और शेर? कौन है वह और मेरे जंगल में क्या कर रहा है?”खरगोश ने कहा, “महाराज, वह बहुत बड़ा शेर है और जब मैंने उससे कहा कि तुम हमारे महाराज का भोजन खा रहे हो, तो वह बोला, “आज से मैं तुम्हारा महाराज हूं और मेरे अलावा इस जंगल में कोई और शेर नहीं रह सकता। मैं सब को मार डालुंगा। फिर आपको लड़ाई के लिए ललकारने के लिए उसने मुझे यहां भेज दिया।”“अच्छा? ऐसी बात है? तो मैं भी तो देखूं कि ये कौन शेर है, तो जो मेरे जंगल में आकर मुझे ही ललकार रहा है। ले चलो मुझे उसके पास,” शेर ने गरजकर बोला और खरगोश के साथ चल दिया।
खरगोश उसे जंगल के बीच मौजूद एक कुएं के पास ले गया और बोला, “महाराज, वो इस गड्ढे के नीचे गुफा में रहता है। आपको आता देख शायद वह अंदर घुस गया।”दूसरे शेर को देखने के लिए जैसे ही शेर ने कुएं में झांका, तो उसे अपनी परछाई दिखी और उसने समझा कि वह दूसरा शेर है।
इसके बाद उसने दूसरे शेर को ललकारने के लिए जब दहाड़ मारी, तो उसी की दहाड़ गूंजकर उसे सुनाई दी, लेकिन उसे लगा कि वह दूसरा शेर भी उसे ललकार रहा है।बस इतने में शेर को गुस्सा आया और उसने कुएं में छलांग लगा दी।
छलांग लगाते ही शेर कुएं की दीवार से टकराया और पानी में गिरकर मर गया। यह खबर जब जंगल के बाकी जानवरों को मिली, तो सारे बहुत खुश हुए और खरगोश की जय जयकार करने लगे।कहानी से सीख : बच्चों,
कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी दिमाग शांत रखने से हर कठिनाई को आसानी से सुलझाया जा सकता है।
धोखेबाजी का फल
सालों पहले एक गांव में सूरज नाम का किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। किसान बूढ़ा था, लेकिन उसकी पत्नी जवान थी। इसी वजह से किसान की पत्नी दुखी रहती थी। वो हमेशा अपने ही जैसे जवान पुरुष से शादी करने की चाहत मन में रखती थी।
महिला के मन की बात को एक चोर समझ गया। वो रोज महिला का पीछा करने लगा। एक दिन उसने किसान की पत्नी को ठगने के विचार से उसे एक झूठी कहानी सुनाई। चोर ने कहा, “सालों पहले मेरी पत्नी मुझे छोड़कर चली गई थी। अब मैं अकेला हूं।
मैं तुम्हारी सुंदरता पर मोहित हो गया हूं और तुम्हें अपने साथ शहर ले जाना चाहता हूं।”स्त्री यह सुनते ही खुश हो गई। वो फटाफट बोली, “ठीक है मैं तुम्हारे साथ चलूंगी, लेकिन मेरे पति के पास बहुत धन है।
पहले मैं उसे ले आती हूं। उन पैसों से हम जीवनभर आराम से रहेंगे।” यह सुनकर चोर ने कहा कि ठीक है तुम जाओ और लौटकर इसी जगह आना मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।स्त्री घर पहुंची, तो देखा कि पति गहरी नींद में था। महिला ने सारे जेवर और नकदी को पोटली में बांधा और चोर के पास चली गई। किसान की पत्नी को आते देखकर चोर के मन में हुआ, अब मैं बहुत जल्दी धनवान बनने वाला हूं।
बस अब इस महिला से पीछा छुड़ाने की तरकीब निकालनी होगी।तभी किसान की पत्नी चोर के पास पहुंची। उसके पहुंचते ही दोनों दूसरे शहर की ओर निकल गए। कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में एक नदी मिली। नदी को देखते ही चोर को एक तरकीब सूझ गई। वह महिला से बोला, “देखो, नदी गहरी है। इसे मैं तुम्हें पार करवाऊंगा, लेकिन पहले मैं यह पोटली नदी के उस पार रखूंगा फिर तुम्हें साथ ले जाऊंगा।”स्त्री को चोर पर पूरा विश्वास था उसने कहा, “हां, ऐसा करना ठीक रहेगा।”
फिर चोर ने कहा, “देखो, तुमने भारी जेवर पहने हैं। ये जेवर भी तुम मुझे दे दो, ताकि तुम्हें नदी पार करने में कोई बाधा न हो।” यह सुनते ही किसान की पत्नी ने अपने सारे जेवर चोर को दे दिए।पोटली में बंधा धन और महिला के जेवर लेकर चोर नदी के पार चला गया।
महिला उसके लौटने का इंतजार करती रही, लेकिन वो फिर कभी लौट कर नहीं आया। अब महिला को बहुत दुख हुआ और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन पछतावे के लिए तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसका सारा पैसा और जेवर लेकर चोर जा चुका था।
कहानी की सीख :धोखेबाजी का फल हमेशा बुरा ही होता है। व्यक्ति जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। इसलिए, कहा जाता है कि हमेशा हर रिश्ते में ईमानदारी दिखानी चाहिए।
सोच-विचार और विश्वास
किसी गांव में शम्भुदयाल नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहता था। वह बहुत विद्वान था और लोग आए दिन उस अपने घर में भोजन के लिए निमंत्रण देते रहते थे। एक दिन ब्राह्मण एक सेठ जी के यहां से भोजन करके आ रहा था। लौटते समय सेठ ने ब्राह्मण को एक बकरी उपहार में दी, जिससे ब्राह्मण रोजाना उसका दूध पी सकें।
ब्राह्मण बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया और ब्राह्मण को लूटने का षड्यंत्र रचा। वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।जैसे ही ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। ब्राह्मण ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा,
‘महाराज मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक ब्राह्मण देवता अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं।’ ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ गया।थोड़ी ही दूरी पर ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। ठग ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘हे ब्राह्मण महाराज, क्या इस गधे के पैर में चोट लगी है, जो आप इसे अपने कंधे पर रखकर ले जा रहे हैं।’
ब्राह्मण उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया और ठग से कहा, ‘तुम्हे दिखाई नहीं देता है कि यह बकरी है, गधा नहीं। ठग ने कहा, ‘महाराज शायद आपको किसी ने बेवकूफ बना दिया है, बकरी की जगह गधा देकर।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और सोचता हुआ आगे बढ़ गया।
कुछ दूरी पर ही उसे तीसरा ठग दिखाई दिया। तीसरे ठग ने ब्राह्मण को देखते ही कहा, ‘महाराज आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं, आप कहें, तो मैं इसे आपके घर तक छोड़ कर आ जाता हूं, मुझे आपका आशीर्वाद और पुण्य दोनों मिल जाएंगे।’ ठग की बात सुनकर ब्राह्मण खुश हो गया और बकरी को उसके कंधे पर रख दिया।थोड़ी दूर जाने पर तीसरे ठग ने पूछा, ‘महाराज आप इस गधे को कहां से लेकर आ रहें हैं।’
ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और कहा, ‘भले मानस यह गधा नहीं बकरी है।’ ठग ने जोर देकर कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता, लगता है किसी ने आपके साथ छल किया है और यह गधा दे दिया।’ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है।
तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह गधा मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया। फिर तीनों ठगों ने बाजार में उस बकरी को बेचकर अच्छी कमाई की और ब्राह्मण ने उनकी बात मानकर अपना नुकसान कर लिया।
कहानी से सीख :किसी भी झूठ को अगर कई बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है, इसलिए हमेशा अपने दिमाग का उपयोग करें और सोच-विचार कर ही किसी पर विश्वास करें।
मुसीबत से समझदारी
बहुत समय पहले की बात है, किसी गांव में एक धोबी रहा करता था। उसके पास एक गधा था, जिसका नाम मोती था। चूंकि, धोबी स्वाभाव से बहुत ही कंजूस था, इसलिए वह अपने गधे को जान बूझकर चारा पानी नहीं देता था और उसे चरने के लिए बाहर भेज दिया करता था। इस कारण गधा बहुत ही कमजोर हो गया था।
जब एक दिन धोबी ने उसे घास चरने के लिए छोड़ा, तो वह चरते-चरते कहीं दूर जंगल में निकल गया। जंगल में उसकी मुलाकात एक गीदड़ से हुई।गीदड़ ने पूछा, “गधे भाई तुम इतने कमजोर क्यों हो?” तो गधे ने जवाब दिया, “मुझसे दिनभर काम करवाया जाता है और मुझे कुछ खाने के लिए भी नहीं दिया जाता है।
यही वजह है कि मुझे इधर-उधर भटक-भटक कर अपना पेट भरना पड़ता है। इस कारण मैं बहुत कमजोर हो गया हूं।” गधे की यह बात सुनकर गीदड़ कहता है, “मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं, जिससे तुम बहुत ही स्वस्थ और शक्तिशाली हो जाओगे।”गीदड़ कहता है, “यहां पास में ही एक बहुत बड़ा बाग है।
उस बाग में हरी-भरी सब्जियां और फल लगे हुए हैं। मैंने उस बाग में जाने का एक खुफिया रास्ता बना रखा है, जिससे मैं रोज रात को जाकर बाग में हरी-भरी सब्जियां और फल खाता हूं। यही वजह है कि मैं एकदम तंदुरुस्त हूं।” गीदड़ की बात सुनते ही गधा उसके साथ हो लेता है। फिर गीदड़ और गधा दोनों ही साथ मिलकर बाग की ओर चल देते हैं।बाग में पहुंच कर गधे की आंखे चमक उठती हैं।
इतने सारे फल और सब्जियां देखकर गधा अपने आप को रोक नहीं पाता है और बिना देर किए वह अपनी भूख मिटाने के लिए रसीले फल और सब्जियों का आनंद लेने लगता है। गीदड़ और गधा जी भर के खाने के बाद उसी बाग में सो जाते हैं।अगले दिन सूरज निकलने से पहले गीदड़ उठ जाता है और फौरन बाग से निकलने को कहता है।
गधा बिना सवाल किए गीदड़ की बात मान लेता है और दोनों वहां से रवाना हो जाते हैं।फिर वो दोनों रोज मिलते और इसी तरह बाग में जाकर हरी-भरी सब्जियां और फल खाते। धीरे-धीरे समय बीतता गया और गधा तंदुरस्त हो गया। रोज भर पेट खाना खाकर अब गधे के बाल चमकने लगे थे और उसकी चाल में भी सुधार हो गया था।
एक दिन गधा खूब खाकर मस्त हो गया और जमीन पर लोटने लगा। तभी गीदड़ ने पूछा, “गधे भाई तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?” तो गधा कहता है, “आज मैं बहुत खुश हूं और मेरा गाना गाने का मन कर रहा है।”गधे की यह बात सुनकर गीदड़ घबराया और बोला, “न गधे भाई, यह काम भूलकर भी मत करना। भूलो मत हम चोरी कर रहे हैं।
कहीं बाग के मालिक ने तुम्हारा बेसुरा गाना सुन लिया और यहां आ गया, तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी। भाई इस गाने-वाने के चक्कर में मत पड़ो।”गीदड़ की यह बात सुनकर गधा बोला, “तुम क्या जानो गाने के बारे में। हम गधे तो खानदानी गायक हैं। हमारा ढेंचू राग तो लोग बड़े शौक से सुनते हैं। आज मेरा गाने का बहुत मन है, इसलिए मैं तो गाऊंगा।”गीदड़ समझ जाता है कि गधे को गाने से रोक पाना अब बहुत मुश्किल है। गीदड़ को अपनी गलती का आभास हो जाता है। गीदड़ बोला, “गधे भाई तुम सही कह रहे हो, गाने-वाने के बारे में हम क्या जाने।
अब तुम बता रहे हो, तो मुमकिन है कि तुम्हारी सुरीली आवाज सुनकर बाग का मालिक फूल माला लेकर तुम्हें पहनाने जरूर आएगा।” गीदड़ की बात सुनकर गधा खुशी से गद-गद हो जाता है। गधा कहता है, “ठीक है, फिर मैं अपना गाना शुरू करता हूं।”तभी गीदड़ कहता है, “मैं तुम्हें फूल माला पहना सकूं, इसलिए तुम अपना गाना मेरे जाने के 15 मिनट बाद शुरू करना।
इससे मैं तुम्हारा गाना खत्म होने से पहले यहां वापस आ जाऊंगा।”गीदड़ की यह बात सुनकर गधा और भी ज्यादा फूला नहीं समाता है और कहता है, “जाओ भाई गीदड़ मेरे सम्मान के लिए फूल माला लेकर आओ। मैं तुम्हारे जाने के 15 मिनट बाद ही गाना शुरू करूंगा।” गधे के इतना कहते ही गीदड़ वहां से नौ दो ग्यारह हो जाता है।
गीदड़ के जाने के बाद गधा अपना गाना शुरू करता है। गधे की आवाज सुनते ही बाग का मालिक लाठी लेकर वहां पहुंच जाता है। वहां गधे को देख बाग का मालिक कहता है कि अब समझ आया कि तू ही है, जो मेरे बाग को रोज चर के चला जाता है। आज मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा। इतना कहते ही बाग मालिक लाठी से गधे की खूब जमकर पिटाई करता है।
बाग मालिक की पिटाई से गधा अधमरा हो जाता है और बेहोश होकर जमीन पर गिर जाता है।
कहानी से सीख :संगीतमय गधा कहानी से सीख मिलती है कि अगर कोई हमारी भलाई के लिए कुछ बात समझाता है, तो उसे मान लेना चाहिए। कभी-कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि दूसरों की बात न मानने से हम मुसीबत में पड़ सकते हैं।
विश्वास की डोर
बरसों पुरानी बात है, एक गांव में देवदत्त नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी देव कन्या के साथ रहता था। उन दोनों की कोई संतान नहीं थी। आखिरकार कुछ वर्षों के बाद उनके घर प्यारे से बच्चे ने जन्म लिया। ब्राह्मण की पत्नी अपने बच्चे को बहुत प्यार करती थी।
एक दिन की बात है ब्राह्मण की पत्नी देव कन्या को अपने घर के बाहर नेवले का छोटा-सा बच्चा मिला। उसे देखकर देव कन्या को उस पर दया आ गई और वो उसे घर के अंदर ले गई और उसे अपने बच्चे की तरह ही पालने लगी।
ब्राह्मण की पत्नी बच्चे और नेवले दोनों को अक्सर पति के जाने के बाद घर में अकेला छोड़कर काम से चली जाती थी। नेवला इस दौरान बच्चे का पूरा ख्याल रखता था। दोनों के बीच का अपार स्नेह देखकर देव कन्या बहुत खुश थी।
एक दिन अचानक ब्राह्मण की पत्नी के मन में हुआ कि कही यह नेवला मेरे बच्चे को नुकसान न पहुंचा दे। आखिर जानवर ही तो है और जानवर की बुद्धि का कोई भरोसा नहीं कर सकता। समय बीतता गया और नेवला और ब्राह्मण के बच्चे के बीच का प्यार गहरा होता गया।एक दिन ब्राह्मण अपने काम से बाहर गया हुआ था।
पति के जाते ही देव कन्या भी अपने बच्चे को घर में अकेला छोड़कर बाहर चली गई। इसी बीच उनके घर में एक सांप घुस आया। इधर, ब्राह्मण देवदत्त का बच्चा आराम से सो रहा था। उधर, सांप तेजी से उस बच्चे की ओर बढ़ने लगा। पास में ही नेवला भी था।
जैसे ही नेवले ने सांप को देखा, तो वो सतर्क हो गया। नेवला तेजी से सांप की ओर लपका और दोनों के बीच काफी देर तक लड़ाई हुई। आखिर में नेवले ने सांप को मारकर बच्चे की जान बचा ली। सांप को मारने के बाद नेवला आराम से घर के आंगन में बैठ गया।इसी बीच देव कन्या घर लौट आई। जैसे ही उसने नेवले के मुंह को देखा, तो वह डर गई।
नेवले का मुंह सांप के खून से लतपत था, लेकिन इस बात से अनजान देव कन्या ने मन में कुछ और ही सोच लिया। वो गुस्से से कांपने लगी। उसे लगा कि नेवले ने उसके प्यारे बेटे की हत्या कर दी है। यही सोचते-सोचते ब्राह्मण की पत्नी ने एक लाठी उठाई और उस नेवले को पीट-पीटकर मार डाला।
नेवले को जान से मारने के बाद ब्राह्मणी अपने बच्चे को देखने के लिए घर के अंदर तेजी से भागी। वहां बच्चा हंसते हुए खिलौनों के साथ खेल रहा था। इसी दौरान उसकी नजर पास में मरे पड़े सांप पर गई। सांप को देखते ही देव कन्या को बहुत पछतावा हुआ।
वो भी नेवले से बहुत प्यार करती थी, लेकिन गुस्से और अपने बच्चे के मोह में उसने बिना कुछ सोचे समझे नेवले को मार दिया था। अब ब्राह्मण की पत्नी जोर-जोर से रोने लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।उसी समय ब्राह्मण भी घर लौट आया। वह पत्नी की रोने की आवाज सुनकर दौड़ता हुआ घर के अंदर गया। उसने पूछा, “देव कन्या तुम क्यों रो रही हो, ऐसा क्या हो गया।”
उसने अपने पति को सारी कहानी सुना दी। नेवले की मौत की बात सुनकर ब्राह्मण देवदत्त को बहुत दुख हुआ। दुखी मन से ब्राह्मण ने कहा, “तुम्हें बच्चे को घर में अकेले छोड़कर जाने और अविश्वास का दण्ड मिला है।
कहानी से सीख :बिना सोचे समझे गुस्से में आकर कोई काम नहीं करना चाहिए। साथ ही विश्वास की डोर को कभी शक की वजह से टूटने नहीं देना चाहिए।
बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में मनोहर नाम का एक जुलाहा (कपड़े सिलने वाला) रहा करता था। उसकी कपड़े सिलने वाली मशीन के ज्यादातर उपकरण लकड़ी से बने हुए थे। एक दिन बहुत ज्यादा बारिश होती है, जिस कारण बारिश का पानी उसके घर में भर जाता है।घर में बारिश का पानी भर जाने के कारण उसकी मशीन पूरी तरह से खराब हो जाती है।
मशीन खराब हो जाने के कारण मनोहर बहुत परेशान हो जाता है। वह दुखी होकर सोचने लगता है कि अगर जल्द ही उसने अपनी इस मशीन को ठीक नहीं किया, तो वह कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाएगा और उसके परिवार को भूखा रहना पड़ेगा।
यह सोचकर मनोहर जंगल जाने का फैसला कर लेता है, ताकि वह अपनी मशीन को ठीक करने के लिए अच्छी लकड़ी काट कर ला सके। फिर मनोहर इस विचार के साथ जंगल की ओर चल देता है। मनोहर पूरा दिन चलता रहता है, लेकिन उसे अपनी मशीन के लिए अच्छी लकड़ी वाला कोई भी पेड़ नजर नहीं आता है।
फिर भी मनोहर हार नहीं मानता है और अच्छे पेड़ की तलाश में आगे बढ़ता रहता है।काफी देर चलने के बाद अचानक मनोहर की नजर एक पेड़ पर पड़ती है, जो काफी ऊंचा, मोटा और हरा-भरा था। उस पेड़ को देख मनोहर बेहद खुश होता है और कहता है, हां यह पेड़ काफी अच्छा है। इसकी लकड़ी से मैं अपनी मशीन को फिर से ठीक कर सकता हूं।
इस विचार के साथ मनोहर कुल्हाड़ी उठाकर जैसे ही पेड़ के तने पर मारने के लिए अपना हाथ ऊपर उठाता है, तभी पेड़ की डाल पर एक देवता प्रकट हो जाते हैं। देवता मनोहर से कहते हैं, “मैं इस पेड़ पर रहता हूं और आराम करता हूं। इसलिए, तुम्हारा इस पेड़ को काटना उचित नहीं होगा।
वैसे भी किसी भी हरे पेड़ को काटना ठीक नहीं है।”देवता की बात सुनकर मनोहर क्षमा मांगते हुए कहता है, “हे देव, मैं मजबूर हूं। मुझे इस पेड़ को काटना ही पड़ेगा। इस पेड़ की लकड़ी मेरी मशीन के लिए उत्तम है। बहुत ढूंढने के बाद मुझे यह पेड़ मिला है। अगर मैं इस पेड़ को नहीं काटूंगा, तो मेरी मशीन खराब रह जाएगी और मैं कपड़े सिलने का काम नहीं कर पाऊंगा।
इस वजह से मैं और मेरा परिवार भूखों मर जाएगा।”मनोहर की बात सुनकर देवता कहते हैं, “मनोहर मैं तुम्हारे जवाब से खुश हूं, तुम इस पेड़ को न काटो। इसके बदले तुम्हें जो वरदान चाहिए वो मांग सकते हो, मैं तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूंगा।” देवता से वरदान की बात सुनकर मनोहर कुछ देर विचार करके कहता है, “हे देव! मैं वर के लिए अपने मित्र और पत्नी से राय लेना चाहता हूं।
इसलिए, आप मुझे एक दिन का समय दीजिए।” मनोहर के आग्रह को देवता मान लेते हैं और उसे एक दिन विचार करने के लिए दे देते हैं।एक दिन का समय लेकर मनोहर अपने घर की ओर चल देता है। रास्ते में उसे उसका मित्र नाई मिलता है। नाई से मिलकर मनोहर उसे देवता की वरदान वाली बात बताता है। उस पर नाई मनोहर को एक राज्य मांगने की सलाह देता है।
नाई कहता है कि तुम देवता से वरदान में एक राज्य मांग लो। तुम उस राज्य के राजा बन जाना और मैं उस राज्य का मंत्री बन जाऊंगा। फिर हमें कोई कष्ट नहीं होगा और हम आराम से अपनी जिंदगी बिता पाएंगे।नाई मित्र की बात पर मनोहर कहता है, “मित्र तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। इस बारे में एक बार मैं अपनी पत्नी से भी पूछ लूं, फिर मैं देवता से वरदान मांग लूंगा।”
पत्नी से राय मांगने की बात पर नाई कहता है, “मित्र तुम्हारी पत्नी काफी घमंडी और मूर्ख है। इसलिए, तुम्हें उससे राय नहीं लेनी चाहिए। ऐसी स्त्री केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचती है।”इस पर मनोहर कहता है, “मित्र फिर भी वह मेरी पत्नी है, इसलिए मैं उसकी राय एक बार जरूर लूंगा।” इतना कहते हुए मनोहर अपने घर की ओर बढ़ जाता है।
घर पहुंच कर मनोहर जंगल में घटी पूरी घटना अपनी पत्नी को बताता है।देवता से वरदान मिलने की बात सुनकर मनोहर की पत्नी कहती है, “राज्य मांग कर कोई लाभ नहीं। राजा की कई जिम्मेदारियां होती हैं। वह कभी सुख से अपना जीवन नहीं बिता पाता है। राजा राम और नल भी राज्य होते हुए जिंदगी भर दुःख में जिए।
आप दो हाथ से इतने अच्छे कपड़े सिलकर ठीक-ठाक कमा लेते हैं। ऐसे में अगर आपके दो सिर और चार हाथ हो जाएं, तो आप दोगुने कपड़े सिल पाएंगे। इससे कमाई भी दोगुनी हो जाएगी और आपका मान भी समाज में बढ़ेगा।”पत्नी की यह बात मनोहर को समझ आ जाती है और वह देवता से वरदान मांगने जंगल की ओर चल देता है।
जंगल पहुंचकर वह दोबारा देवता से मिलता है। देवता मनोहर को देखकर कहते हैं कि मनोहर मांगों क्या वर मांगना है तुम्हें।मनोहर देवता से कहता है, “हे देव! आप मुझे दो सिर और चार हाथ दे दीजिए।” देवता मनोहर की यह बात सुनकर पूछते हैं कि तुम दो सिर और चार हाथ का क्या करोगे?तब मनोहर बताता है कि दो सिर और चार हाथ होने पर वह दोगुना कपड़े सिल पाएगा, जिससे उसकी कमाई पहले से अधिक हो जाएगी।
मनोहर की यह बात सुनकर देवता मुस्कुराते हैं और मनोहर को वरदान दे देते हैं।देवता का वरदान पाकर मनोहर को दो सिर और चार हाथ हो जाते हैं। वरदान पाकर मनोहर बहुत खुश होता है और अपने घर की ओर चल देता है। मनोहर जैसे ही अपने गांव पहुंचता है, तो गांव में खेल रहे बच्चे उसे देखकर डर जाते हैं। वह सब उसे एक राक्षस समझते हैं।
तभी कुछ गांववाले हाथों में हथियार लेकर मनोहर पर हमला कर देते हैं और मनोहर की मौत हो जाती है। जब मनोहर की मौत की खबर मनोहर की पत्नी को होती है, तो वह फौरन मनोहर को देखने वहां पहुंच जाती है।
मनोहर की लाश देख उसकी पत्नी रोने लगती है और कहती है कि यह सब मेरी गलती है। मैंने ही उनसे देवता से दो सिर और चार हाथ मांगने के लिए कहा था। अगर ऐसा न होता तो आज मनोहर को कोई राक्षस न समझता और वे जिंदा होते।
कहानी से सीख :दो सिर वाला जुलाहा कहानी से सीख मिलती है कि बिना सोचे-विचारे किया गया कोई भी काम हमेशा दुखदाई होता है।
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